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उ॒त नोऽहि॑र्बु॒ध्न्यः॑ शृणोत्व॒ज एक॑पात्पृथि॒वी स॑मु॒द्रः। विश्वे॑ दे॒वा ऋ॑ता॒वृधो॑ हुवा॒नाः स्तु॒ता मन्त्राः॑ कविश॒स्ता अ॑वन्तु ॥१४॥

English Transliteration

uta no hir budhnyaḥ śṛṇotv aja ekapāt pṛthivī samudraḥ | viśve devā ṛtāvṛdho huvānāḥ stutā mantrāḥ kaviśastā avantu ||

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Pad Path

उ॒त। नः॒। अहिः॑। बु॒ध्न्यः॑। शृ॒णो॒तु॒। अ॒जः। एक॑ऽपात्। पृ॒थि॒वी। स॒मु॒द्रः। विश्वे॑। दे॒वाः। ऋ॒त॒ऽवृधः॑। हु॒वा॒नाः। स्तु॒ताः। मन्त्राः॑। क॒वि॒ऽश॒स्ताः। अ॒व॒न्तु॒ ॥१४॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:50» Mantra:14 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:10» Mantra:4 | Mandal:6» Anuvak:5» Mantra:14


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को क्या आकाङ्क्षा करने योग्य है, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! वह (एकपात्) जिसका जगत् में एक पाद है (अजः) जो कभी नहीं उत्पन्न होता वह परमात्मा (नः) हमारी उस प्रार्थना को (शृणोतु) सुने जिसने (बुध्न्यः) अन्तरिक्ष में होनेवाला (अहिः) मेघ (पृथिवी) भूमि (समुद्रः) अन्तरिक्ष (उत) और (ऋतावृधः) सत्य के बढ़ानेवाला (हुवानाः) और आह्वान करनेवाले तथा (विश्वे, देवाः) समस्त विद्वान् (कविशस्ताः) कवि मेधावी जनों से प्रशंसित वा पढ़ाये हुए और (स्तुताः) प्रशंसित (मन्त्राः) वेद की श्रुति वा वेदविचार हम लोगों की (अवन्तु) रक्षा करें ॥१४॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! तुम-जो जन्म-मरणादि व्यवहार से रहित जगदीश्वर है, उसकी कृपा और पुरुषार्थ से तथा सम्पूर्ण पृथिवी आदि पदार्थों के विज्ञान से अपनी उन्नति निरन्तर करो ॥१४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः किमाकाङ्क्षितव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! स एकपादजः परमात्मा नस्तां प्रार्थनां शृणोतु यया बुध्न्योऽहिः पृथिवी समुद्र उतर्तावृधो हुवाना विश्वे देवाः कविशस्ताः स्तुता मन्त्रा नोऽवन्तु ॥१४॥

Word-Meaning: - (उत) अपि (नः) अस्माकम् (अहिः) मेघः (बुध्न्यः) बुध्नेऽन्तरिक्षे भवः (शृणोतु) (अजः) यः कदाचिन्न जायते स ईश्वरः (एकपात्) एकः पादो जगति यस्य सः (पृथिवी) भूमिः (समुद्रः) अन्तरिक्षम् (विश्वे) सर्वे (देवाः) विद्वांसः (ऋतावृधः) सत्यस्य वर्धकाः (हुवानाः) आह्वातारः (स्तुताः) प्रशंसिताः (मन्त्राः) वेदस्य श्रुतयो विचारा वा (कविशस्ताः) कविभिर्मेधाविभिः शस्ताः प्रशंसिता अध्यापिता वा (अवन्तु) ॥१४॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यूयं यो जन्ममरणादिव्यवहाररहितो जगदीश्वरोऽस्ति तत्कृपया पुरुषार्थेन च सर्वेषां पृथिव्यादिपदार्थानां विज्ञानेन स्वोन्नतीः सततं विदधत ॥१४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! जो जन्म मरण इत्यादी व्यवहाररहित जगदीश्वर आहे त्याच्या कृपेने व पुरुषार्थाने तसेच संपूर्ण पृथ्वी इत्यादी पदार्थांच्या विज्ञानाद्वारे सतत आपापली उन्नती करा. ॥ १४ ॥